हिंदी भाषा के प्रति इनकी बचपन से ही रूचि थी। इन्होंने प्राथमिक कक्षाओं से लेकर उच्च कक्षाओं तक हिंदी विषय का गहन अध्ययन किया और हिंदी विषय को अपना व्यवसाय बनाते हुए इसका आरंभ महाविद्यालय में हिंदी अध्यापन करते हुए किया। इन्होंने प्राथमिक कक्षाओं से लेकर उच्च कक्षाओं तक हिंदी विषय का गहन अध्ययन किया और हिंदी विषय को अपना व्यवसाय बनाते हुए इसका आरंभ महाविद्यालय में हिंदी अध्यापन करते हुए किया। इन्होंने हिंदी विषय में पी. एच. डी की उपाधि प्राप्त की।
राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूँगा है ।
किसी विदेशी भाषा को अंगीकार करना हमारे लिए गर्व की बात है किंतु अपनी भाषा की उपेक्षा करके किसी विदेशी भाषा को महत्व देना हमारे लिए बड़े शर्म की बात है ।
14 सितंबर को भारत में "हिंदी दिवस" मनाया जाता है । हिंदी सप्ताह और हिंदी पखवाड़े भी लगते हैं । उस समय तो जगह-जगह बस हिंदी की चर्चा होती है । ज्ञानी और विद्वान अपने उद्गारों की अभिव्यक्ति भी हिंदी में करते हैं और शपथ भी लेते हैं कि हम हिंदी के उत्थान के लिए कार्य करेंगे । लेकिन तुरंत बाद ही... बेचारी हिंदी पूर्व स्थिति में आ जाती है| यह है अपने ही देश में - अपनी भाषा की दुर्गति| आप इस बात पर अवश्य विचार करें कि केवल हिंदी भाषा को ही "हिंदी दिवस" के रूप में किसी एक तिथि की आवश्यकता क्यों पड़ती है? क्यों ना आप और हम हर साल के 365 दिन हिंदी भाषा का प्रयोग करते हुए गर्व महसूस करें?
हिंदी भारत माता के माथे की बिंदी - भारत को स्वतंत्र हुए लगभग 7 दशक हो गए । क्या आज हम सच्चे अर्थों में स्वतंत्र हैं ? कहीं ऐसा तो नहीं कि पहले हम अंग्रेजों के गुलाम थे आज उनकी भाषा और उनकी जीवन शैली के गुलाम हों ? आज छोटे छोटे बच्चे , युवाओ और उनके माता पिता की हिंदी भाषा के प्रति कोई खास रुचि दिखाई नहीं देती । इसके बहुत से कारण हो सकते हैं | हमें केवल उन कारणों तक ही सीमित नहीं रहना है बल्कि कारणों के कारणों तक पहुँचना है तभी हिंदी भाषा की अस्मिता को बचाया जा सकता है हम किसी विदेशी भाषा को बोलने में जितना गर्व महसूस करते हैं उससे अधिक गर्व हमें हिंदी बोलने में करना चाहिए जब तक अपने ही देश में स्वयं इसका सम्मान नहीं करेंगे तब तक दूसरों से सम्मान की अपेक्षा करना उचित नहीं हैं ।