हमारे बारे में

संस्थापक के बारे में

हिंदी जगत में डॉ. पीयूष कुमार शर्मा की पहचान एक भाषा विशेषज्ञ के रूप में होती है।

हिंदी भाषा के प्रति इनकी बचपन से ही रूचि थी। इन्होंने प्राथमिक कक्षाओं से लेकर उच्च कक्षाओं तक हिंदी विषय का गहन अध्ययन किया और हिंदी विषय को अपना व्यवसाय बनाते हुए इसका आरंभ महाविद्यालय में हिंदी अध्यापन करते हुए किया। इन्होंने प्राथमिक कक्षाओं से लेकर उच्च कक्षाओं तक हिंदी विषय का गहन अध्ययन किया और हिंदी विषय को अपना व्यवसाय बनाते हुए इसका आरंभ महाविद्यालय में हिंदी अध्यापन करते हुए किया। इन्होंने हिंदी विषय में पी. एच. डी की उपाधि प्राप्त की।




हिंदी विकास संस्थान के लक्ष्य - उददेश्य

  • • हिंदी शोध-पत्रिका का प्रकाशन।
  • • देश-विदेश में सृजित शिक्षाप्रद रचनाओं को एकत्र कर संकलन तैयार करना, छमाही हिंदी पत्रिका में प्रकाशित करवाना एवं रचनाकारों को प्रेरित, प्रोत्साहित एवं पुरस्कृत करना।
  • • हिंदी कार्यशालाओं, प्रतियोगिताओं एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करना।
  • • हिंदी भाषा को बढ़ावा देने के लिए विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों, भाषा -केंद्रों, प्रशिक्षण केंद्र एवं पुस्तकालयों की स्थापना करना|
  • • हिंदी भाषा वह साहित्य के विकास हेतु वेबसाइट का निर्माण कराना |
  • • विश्व स्तर पर हिंदी को प्रतिष्ठित एवं विकसित करने के लिए कवि-गोष्ठियों का आयोजन एवं सम्मेलन करना तथा जापानी, रूसी, अंग्रेजी और चीनी भाषा को हिंदी से जोड़ते हुए शब्द कोश का निर्माण एवं प्रकाशन |
  • • हिंदी की प्रमुख बोलियों के साहित्य का सर्वधन, प्रचार-प्रसार एवं लोक गीतों को एकत्र कर उनका संग्रह प्रकाशित करना |
  • • ऑनलाइन हिंदी शब्दकोष का निर्माण कराना एवं हिंदी भाषा संवर्धन के लिए मोबाइल एप्प आरंभ करना |
  • • हिंदी भाषा को भारत की अन्य भाषाओं से जोड़कर हिंदी भाषा को समृद्ध करना एवं उसे देवनगरी की लिपि में लिखना |
  • • हिंदी भाषा में प्रकाशित होने वाली शैक्षिक पुस्तकों के स्तर का आकलन करना एवं कठिन को सरल बनाने का प्रयास करना |
  • • विद्यार्थियों में हिंदी भाषा का विकास करने एवं उनकी प्रतिभा को उभारने हेतु "हिंदी ओलिंपियाड" एवं अन्य प्रतियोगिताएं आयोजित करना एवं प्रतिभाशाली छात्रों को पुरस्कृत करना |
  • • प्रसिद्ध साहित्यकारों की जन्मतिथि एवं पुण्यतिथि पर विशेष कार्यक्रम आयोजित करना एवं उनके नाम से पुरस्कार आदि प्रदान करना |
  • • हिंदी भाषा व साहित्य पर शोध करने वाले छात्रों को सामग्री उपलब्ध कराने में सहयोग देना एवं शोध ग्रंथों को पुरस्कृत करना |
  • • हिंदी भाषा को सिखाने और उसे आसान बनाने हेतु दृश्य-श्रव्य साधनों वाले "हिंदी अध्ययन केंद्रों" की स्थापना करना |



कार्यकारिणी के पदाधिकारी एवं सदस्य

  • • डॉ. पीयूष कुमार शर्मा - संस्थापक एवं अध्यक्ष
  • • डॉ. प्रेम कुमार - उपाध्यक्ष
  • • श्रीमती कल्पना - महासचिव
  • • श्री प्रेम कुमार शुक्ला - संयुक्त सचिव
  • • श्री संदेश डबास - कोषाध्यक्ष
  • • श्री मनोज तंवर - सदस्य
  • • श्री अमित गौतम - सदस्य

  • हम राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, दिल्ली के पंजीकरण अधिनियम 1860 के अंतर्गत इस स्मृति पत्र का अनुसरण करते हुए "हिंदी विकास संस्थान" का गठन करते हैं|

    हिंदी विकास संस्थान के सम्मानित सदस्य
  • • डॉ. पीयूष कुमार शर्मा - शिक्षाविद
  • • डॉ. प्रेम कुमार - शिक्षाविद
  • • श्रीमती कल्पना - समाजसेवी
  • • श्री प्रेम कुमार शुक्ला - शिक्षाविद
  • • श्री संदेश डबास - निजी व्यवसाय
  • • श्री मनोज तंवर - सेवारत
  • • श्री अमित गौतम - समाजसेवी
  • • श्रीमती रोमा चौबे - समाजसेवी
  • • श्रीमती कुसुम लता - समाजसेवी
  • • श्रीमती सफलता - शिक्षाविद
  • • श्री मनोज - निजी व्यवसाय
  • • श्री अरविंद कुमार - सेवारत
  • • श्री कुसुम पाल सिंह - शिक्षाविद
  • • डॉ. शैलेंद्र भूषण शर्मा - शिक्षाविद

विचार

A .

महात्मा गाँधी

राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूँगा है ।

B .

महादेवी वर्मा

किसी विदेशी भाषा को अंगीकार करना हमारे लिए गर्व की बात है किंतु अपनी भाषा की उपेक्षा करके किसी विदेशी भाषा को महत्व देना हमारे लिए बड़े शर्म की बात है ।

C .

आशा रौतेला मेहरा

14 सितंबर को भारत में "हिंदी दिवस" मनाया जाता है । हिंदी सप्ताह और हिंदी पखवाड़े भी लगते हैं । उस समय तो जगह-जगह बस हिंदी की चर्चा होती है । ज्ञानी और विद्वान अपने उद्गारों की अभिव्यक्ति भी हिंदी में करते हैं और शपथ भी लेते हैं कि हम हिंदी के उत्थान के लिए कार्य करेंगे । लेकिन तुरंत बाद ही... बेचारी हिंदी पूर्व स्थिति में आ जाती है| यह है अपने ही देश में - अपनी भाषा की दुर्गति| आप इस बात पर अवश्य विचार करें कि केवल हिंदी भाषा को ही "हिंदी दिवस" के रूप में किसी एक तिथि की आवश्यकता क्यों पड़ती है? क्यों ना आप और हम हर साल के 365 दिन हिंदी भाषा का प्रयोग करते हुए गर्व महसूस करें?

D .

डॉ. पीयूष कुमार शर्मा

हिंदी भारत माता के माथे की बिंदी - भारत को स्वतंत्र हुए लगभग 7 दशक हो गए । क्या आज हम सच्चे अर्थों में स्वतंत्र हैं ? कहीं ऐसा तो नहीं कि पहले हम अंग्रेजों के गुलाम थे आज उनकी भाषा और उनकी जीवन शैली के गुलाम हों ? आज छोटे छोटे बच्चे , युवाओ और उनके माता पिता की हिंदी भाषा के प्रति कोई खास रुचि दिखाई नहीं देती । इसके बहुत से कारण हो सकते हैं | हमें केवल उन कारणों तक ही सीमित नहीं रहना है बल्कि कारणों के कारणों तक पहुँचना है तभी हिंदी भाषा की अस्मिता को बचाया जा सकता है हम किसी विदेशी भाषा को बोलने में जितना गर्व महसूस करते हैं उससे अधिक गर्व हमें हिंदी बोलने में करना चाहिए जब तक अपने ही देश में स्वयं इसका सम्मान नहीं करेंगे तब तक दूसरों से सम्मान की अपेक्षा करना उचित नहीं हैं ।

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